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5.21सूर्यका रथ,patgendraa

 सूर्य का रथ तथा उसकी गति का वर्णन

परिमाण और लक्षणों के सहित इस भूमंडल का जितना विस्तार है इसी के अनुसार विद्वान लोग जो लोग का भी परिमाण बताते हैं जिस प्रकार चना मटर आदि के दो दलों में से एक का स्वरूप जान लेने से दूसरे का भी जाना जा सकता है उसी प्रकार ब** लोग के परिमाण से ही जो लोग का भी परिमाण जान लेना चाहिए इन दोनों के बीच में अंतरिक्ष लोक है यह इन दोनों का संधि स्थान है। 2
इस के मध्य भाग में स्थित ग्रह और नक्षत्रों के अधिपति भगवान सूर्य अपने ताप और प्रकाश से तीनों लोगों को तड़पाते और प्रकाशित करते रहते हैं।
वे उत्तरायण दक्षिणायन और विषुवत नाम वाली क्रमशः मंद सिद्ध और समान गति से चलते हुए समय अनुसार मकर आद राशियों में ऊंचे नीचे और समान स्थानों में जाकर दिन रात को बड़ा छोटा या समान करते हैं3

जब सूर्य भगवान मेष या तुला राशि पर आते हैं तब दिन-रात समान हो जाते हैं जब रस आदि 5 राशियों में चलते हैं।
तब प्रति मास यात्रियों में केके घड़ी कम होती जाती है और उसी हिसाब से दिन बढ़ते जाते हैं 4।
जब वृश्चिक राशि 5 राशियों में चलते हैं तब दिन और रात रियो में इसके विपरीत परिवर्तन होता है 5
इस प्रकार दक्षिणायन आरंभ होने तक दिन बढ़ते रहते हैं कोर्स उत्तरायण लगने तक रात्रिया।6

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