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5.12 भरत जी का समाधान

 पूर्व जन्म में में भरत नाम का राजा था। ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों से विरक्त होकर भगवान की आराधना में ही लगा रहता था;तो भी एक मृग में आ सकती हो जाने से मुझे परमार्थ से भ्रष्ट होकर अगले जन्म में मृग बनना पड़ा।14

 

किंतु भगवान श्री कृष्ण की आराधना के प्रभाव से उस मृग योनि में भी मेरी पूर्व जन्म की स्मृति लुप्त नहीं हुई। इसी से अब मैं जनसंसर्ग से डरकर सर्वदा असंगभाव से गुप्तरूप से ही बिचरता रहता हूं।15

 

सारांश यह है कि विरक्त महापुरुषों के सत्संग से प्राप्त ज्ञान रोग खड़ग के द्वारा मनुष्य को इस लोक में ही अपने मोह बंधन को काट डालना चाहिए। फिर श्री हरि की लीलाओं के कथन और श्रवण से भगवत स्मृति बनी रहने के कारण व सुगमता से ही संसारमार्ग को पार करके भगवानको प्राप्त कर लेता है। 16

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