Skip to main content

परा अपरा ,पुरुष प्रकृति।

मैं संपूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूं अर्थात संपूर्ण जगत का मूल कारण हूं।

पृथ्वी, जल अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार, इस प्रकार यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी जड़ अर्थात अपरा प्रकृति है।

इससे दूसरी जिससे यह संपूर्ण जगत धारण किया जाता है मेरी जीव रूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान।।

।।श्री कृष्ण ।।

Comments

Popular posts from this blog